ठंडी पड़ती मानव मूल्यों की अगन
Written by डॉ कांतेश खेतानी, 2020-06-26
बड़े दुख का विषय है।
आजकल लोग पार्टीयों के नाम पर तो एकत्रित हो जाते हैं, पर गम के अवसर पर, कोरोना का बहाना बना कर, मात्र whatsapp text मैसेज से श्रद्धांजलि देकर अपनी औपचारिकता पूरी करने लग गए हैं।
अचरज तो तब होता है, जब हमारे तथाकथित 'नज़दीकी' रिश्तेदारों, न्यातियों और मित्रों के बजाय वे लोग ऐसे दुःखद समय मे व्यक्तिगत उपस्थित होते हैं या फिर फ़ोन पर बात करके दुख व्यक्त करते हैं, जिनसे मात्र हमारी दूर की राम-राम होती है।
जिन लोगों का साथ अक्सर हम उनके दुख के अवसरों पर देते हैं, और जिन्हें हम अपने 'नजदीकी' समझते हैं, वे क्यों हमारे दुख के अवसर पर हमेशा नदारद पाए जाते हैं?.......... वहीं जब कोई पार्टी या उत्सव होता है, तो इनमें से हर कोई सहर्ष उपस्थित नज़र आता है।
बदलते समय ने मानवीय व्यवहारों के समीकरण बदल दिए हैं....…..और बहाने और माध्यम भी दिए हैं, कोरोना और सोशल मीडिया के रूप में। पर याद रखिये, सोशल मीडिया के text के font और emoji कितने ही सुंदर क्यों न बना दिये जायें........उस दो मिनट की बात का भावनात्मक मूल्य कभी नहीं घटा पाएंगे जो व्यक्तिगत या फिर फ़ोन पर की जाती है।
बहरहाल उन सभी 'कुछ' मित्रों और कई 'परायों' का धन्यवाद जो, दुख के अवसरों पर व्हाट्सएप्प से मैसेज भेजकर खानापूर्ति नहीं करते, वरन फ़ोन पर कुछ क्षण बतिया कर दुखी मन को ढांढस बंधाते हुए उससे कई सलाम ले जाते हैं। .........
......वाकई यह बात सही कही गयी है.....दोस्त और रिश्तेदार तो सब नाम के हैं.....दुख के क्षणों में जो साथ हों, वास्तव में वहीं 'अपने' होते हैं।
जय श्री विठ्ठल।।