प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री जो स्वयं चिकित्सक हैं, ने मीडिया के माध्यम से कुछ गंभीर प्रश्न उठाए हैं। इन प्रश्नों का समाधान होना चाहिए, और अब यह गंभीर चिंतन का विषय है।

1. शव रोकने का मामला
मंत्री जी ने मीडिया में तीन उदाहरण देकर आरोप लगाए कि कैसे तीन मरीजों ने लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन वे बच नहीं पाए और अस्पतालों ने बकाया बिलों के भुगतान न होने के कारण उनके शव परिजनों को नहीं दिए।

यह एक बेहद संवेदनशील विषय है, जिस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि अस्पताल शव को इस तरह नहीं रोक सकते।
डॉ. किरोड़ी का कथन बिल्कुल सत्य है — यदि कोई अस्पताल रोगी के शव को बकाया भुगतान न होने के कारण रोकता है, तो उस पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है।

लेकिन हमें इस समस्या का दूसरा पक्ष भी समझना होगा।
जो अस्पताल गंभीर रोगियों का इलाज करते हैं, वहां यह स्थिति अक्सर उत्पन्न होती है। अधिकांश बड़े अस्पतालों में प्रतिदिन किसी न किसी रोगी की मृत्यु होती है, और लगभग हर ऐसे रोगी का कुछ न कुछ बिल बकाया भी रहता है।

यदि अस्पतालों को ऐसे सभी रोगियों का बिल माफ करने के लिए अथवा जमा की गई राशि लौटाने के लिए बाध्य किया जाएगा, तो फिर कौन-सा अस्पताल किसी गंभीर रोगी का इलाज करना चाहेगा?
क्या यह स्थिति समाज के हितकर  है?

संभावित समाधान:
यदि रोगी का परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं तो सरकार को उस रोगी के बिल का पुनर्भरण करना चाहिए
क्योंकि नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना सरकार का दायित्व है — और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाओं या विफलता के कारण ही रोगियों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।

3. 24 घंटे में आठ लाख का बिल?

यह एक गंभीर प्रश्न है। संबंधित अस्पतालों को चाहिए कि वे अपना पक्ष स्पष्ट रूप से मीडिया के समक्ष रखें और बिल का विस्तृत ब्रेकअप प्रस्तुत करें।

हालांकि अस्पतालों में इलाज पर कोई सीमा तय नहीं है, परंतु निजी अस्पतालों का यह नैतिक दायित्व है कि वे भर्ती के समय रोगी की स्थिति और संभावित खर्च की सही जानकारी दें तथा इलाज के दौरान पूर्ण पारदर्शिता बनाए रखें।


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4. एक रुपए में मिली जमीन का मुद्दा

 चौथा आरोप है कि जिन अस्पतालों को हजारों करोड़ की जमीन एक रुपए में मिली है — क्या वे जमीन आवंटन से जुड़े सभी नियमों का पालन कर रहे हैं?

हाल ही में माननीय सर्वोच्च अदालत ने इस विषय पर गंभीर प्रश्न पूछे हैं और सभी राज्य सरकारों को इसका संज्ञान लेने के निर्देश दिए हैं।
https://navbharattimes.indiatimes.com/india/supreme-court-cracks-down-on-free-treatment-for-the-poor-notices-issued-to-private-hospitals/articleshow/123613203.cms
यदि जमीन आवंटन की शर्तों में अस्पतालों को कुछ प्रतिशत रोगियों का मुफ्त इलाज करना आवश्यक है, तो इसका कड़ाई से पालन होना चाहिए।

जो अस्पताल इस नियम का उल्लंघन करते हैं, उनके विरुद्ध सरकार को नियमानुसार कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है।

अस्पतालों की चिंता

इस प्रकरण को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, उससे अब अस्पतालों के बीच यह चिंता व्याप्त है —
क्या अब हर उस मामले में, जिसमें रोगी की मृत्यु हो जाए, अस्पताल को इलाज का खर्च लौटाना पड़ेगा?

यह चिंता स्वाभाविक है और इस पर संतुलित व न्यायसंगत नीति-निर्माण आवश्यक है, ताकि न तो रोगियों के अधिकारों की अनदेखी हो और न ही अस्पतालों के हितों पर कुठाराघात हो और उनका संचालन प्रभावित हो।

-डॉ राज शेखर यादव
( लेखक के निजी विचार)