हिंदुस्तानी नर्सिंग होम्स और छोटे अस्पतालों पर रिसर्च होनी चाहिए थी कि कैसे ये छोटे अस्पताल सीमित संसाधनों के बावजूद अच्छी और सस्ती  सेवाएं दे पाते हैं और सफलता का ये मॉडल सरकारी अस्पतालों में भी लागू होना चाहिए था।लेकिन हो इसका उल्टा रहा है।अब इन छोटे अस्पतालों को सरकारी नियम कायदों के मकड़जाल में उलझा कर इनका गला दबाने का प्रयास हो रहा है।pndt एक्ट,MTP ACT,Pollution control  जैसे भारी भरकम एक्ट से पहले ही ये छोटे अस्पताल जूझ रहे थे अब क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट और nabh जैसे नए नियम कानून इन छोटे अस्पतालों के ताबूत की आखिरी कील साबित हों तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिए।

इन छोटे अस्पतालों की तुलना यदि सरकारी chc से की जाए तो आप दोनों में फ़र्क़ भी समझ पाएंगे और इन छोटे अस्पतालों  की सफलता के रहस्य को भी समझ पाएंगे ।

एक  सरकारी chcपर ecg तकनीशियन तो होता है  लेकिन मरीज़ ecg के लिए इधर उधर भटकते दिखाई देंगे।कभी मशीन खराब  तो कभी तकनीशियन छुट्टी पर।रेडियोग्राफर होगा पर xray मशीन खराब हुई तो 6 महीने से पहले ठीक नही होगी।अस्पताल में सर्जन है तो anesathetist नही होगा,एनेस्थेटिस्ट है तो सर्जन नही होगा। कुल मिला कर अस्पताल में 10-15डॉक्टर्स और 50-60 नर्सिंग कर्मचारी होंगे पर इमरजेंसी सेवाएं शून्य होंगी।मरीज़ को इलाज की बजाय डिस्पोज़ ऑफ  करने में लगे रहते हैं सभी लोग।

नर्सिंग होम्स में 2  प्रशिक्षित डॉक्टर्स होंगे 8-10 कर्मचारी होंगे ,उनमें से भी अधिकांश के पास शायद कोई फॉर्मल डिग्री न हो। ecg  technician ,Radiographer ,एम्बुलेंस ड्राइवर Pharmacist ,OT Technician ये अलग से नही होते क्योंकि उन 8-10  लोगों को सब काम आता होगा।नही आता तो मेहनत करके सिखाया जाता है।किसी दिन स्वीपर नही आता तो ये लोग खुद साफ सफाई करके काम चला ही देंगे।अधिकांश उपकरणो के लिए बैक अप रखा जाता है,स्पेयर पार्ट्स रखे जाते हैं जिस से कोई उपकरण खराब हो तो काम न रुके।कर्मचारी 10-12घंटे तक काम करते दिखाई देंगे और हॉस्पिटल के मालिक तो 24 घंटे काम पर ही दिखाई देंगे।2 डॉक्टर्स होंगे पर काम 5 डॉक्टर्स के बराबर कर लेंगे। कोई वीकली ऑफ नही,साल में 2-4दिन वेकेशन्स पर चले गए तो ठीक वरना बहुत से युवा चिकित्सको की  डिक्शनरी से  तो उनके करीयर के शुरुआती सालों में  वेकेशन नाम का शब्द ही गायब मिलेगा।काम के प्रति यही समर्पण  और  Available Human resource का best utilization ही इन नर्सिंग होम्स की सफलता का मंत्र है। अपने मरीजों को अफोर्डेबल और बेहद सस्ता इलाज देने के बावजूद

ये नर्सिंग होम्स प्रॉफिट मेकिंग यूनिट्स हैं क्योंकि इन्होंने अपने खर्चों को सीमित रखा।

अब ऐसा नही होगा।

CEA,आयुष्मान  और NABH के बाद इन नर्सिंग होम्स को भी बदलना होगा।इन्हें नियमानुसार बिल्डिंग पर भारी खर्च करना होगा, क्वालिफाइड नर्सेज,ecg technician, रेडियोग्राफर,OT Technicians,Ambulance driver सब रखने होंगे,icu में हर 2 beds पर एक क्वालिफाइड  नर्सिंग स्टाफ का रेश्यो भी रखना होगा ।8 घंटे की शिफ्ट होगी।ड्यूटी डॉक्टर  रखना  होगा।सरकार हर प्रोसीजर के रेट्स निर्धारित करेगी,हर काम सरकारी नियम कायदों से ही होगा।

यदि  भारी भरकम नियम,कायदों और जटिल रेगुलेशन्स से संस्थाएं चलती तो सभी सरकारी संस्थाएं  अव्वल नंबर पर होती।न BSNL ओर MTNL के मर्जर की नौबत आती और न ही इंडियन एयरलाइन्स बिकने के कगार पर होती।न सरकारी स्कूलों में छात्रों की  कमी  होता और न सरकारी अस्पतालों से किसी को शिकायत होती।याद कीजिये 70 और 80 के दशक के वो  दिन जब बाजार में केवल सरकारी तंत्र की मोनोपली थी।घरेलू गैस कनेक्शन 3 साल और फ़ोन कनेक्शन 5 साल जूझने के बाद मिलता था।  फिर हर क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर आया और चीजें तेजी से बदलती गई।BSNL और इंडियन  एयरलाइन्स  जैसी संस्थाये इसलिए डूब रही है क्योंकि इनके खर्चे ज्यादा है और आमदनी कम । कर्मचारियों की मानसिकता  भी ऐसी की ग्राहक को संतुष्ट करना तो दूर नाराज़ करके ही भेजते हैं।इनकी कार्यप्रणाली  पर लिखा जाए तो  इन पर भी छोटी मोटी रिसर्च हो सकती है।

CEA ,NABH  और आयुष्मान योजना के बाद नर्सिंग होम्स का वो ही हाल होगा जो सरकारी अस्पतालों का है।अधिकांश बंद हो जाएंगे,कुछ अपग्रेड करके कॉर्पोरेट बन जाएंगे।आयुष्मान से मुफ्त इलाज तो मिलेगा पर अच्छा होगा इसकी कोई गारंटी नही।