प्रशासन द्वारा राज्य के प्राइवेट अस्पतालों के विरुद्ध आये दिन अव्यवहारिक आदेश जारी करने का एक सिलसिला सा बन गया है। जिस कारण चाह कर भी प्राइवेट अस्पतालों में चिकित्सक खुलकर और पूर्ण कार्यकुशलता से काम करने से घबराने लगे हैं । इसी कारण निजी चिकित्सालयों के मालिकों में रोष और कुंठा उत्पन्न होने लगी है। और वे इसके खिलाफ विरोध के स्वर भी बुलंद नहीं कर पा रहे हैं। कारण उनको डर है कि कहीं सरकार एपिडेमिक एक्ट के हवाले से उनके ऊपर कोई गम्भीर मामला न दायर कर दे..........यदि ऐसा समय आया तो पता नहीँ उस समय उनके सहयोग में उनके साथी आगे आएंगे या नहीं........और जो आये भी वो कितने दिन तक साथ रहेंगे।
आज कोटा के एक निजी अस्पताल के खिलाफ वहां के cmho का एक बेतुका आधारहीन आदेश आया............एक (सरकारी) डॉक्टर ने दूसरे (निजी) डॉक्टर के खिलाफ, एक पीड़ा पहुंचाने वाला आदेश निकाला.....................COVID 19 के काल ने सरकारी और निजी चिकित्सकों के तमगों में आपसी दूरियां बढ़ाने का कार्य अधिक किया है। जबकि सरकार को निजी चिकित्सकों को भरोसे और सहयोग से साथ में लेकर इस दूरी को मिटाने का कार्य करना था, जिससे जनता का और अधिक भला होता और सरकार को भी उलहाने नहीं सहने पड़ते।
बहरहाल, आये दिन निजी अस्पतालों के मालिकों के विरुद्ध प्रशासन के ऐसे दबाव बनाने वाले अव्यहारिक आदेशों से निजी चिकित्सालयों के मालिकों में रोष बढ़ता जा रहा है और सब्र समाप्त होता जा रहा है। कहावत है कि "जब तक किसी बालक में मार का भय रहता है, तबतक वह अपने अभिभावक का हर कहना मानता है......लेकिन जब उसे वही मार बिना कारण बारबार मिलने लग जाती है, तो वह उद्दंडता से अंततः उसका विरोध करने का जगर दिख ही देता है..........फिर चाहकर भी उसे कोई मार काबू में नहीं कर पाती।"
अतः यदि प्रशासन के निजी चिकित्सालयों के खिलाफ, बिना जायज़ कारण के अव्यवहारिक दमनकारी आदेश जारी होने का सिलसिला यूंही ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हताश और बेबस निजी चिकित्सक सारे दंडात्मक भय त्याग कर सड़कों पर उतर आएं या फिर स्वेच्छा से अपनी गिरफ्तारियां देने का अभियान छेड़ दें............ रोज़ रोज़ सज़ा के डर से थोड़ा-थोड़ा मरने से अच्छा है, कि एक बार ही अपने स्वाभिमान हेतु सामूहिक सत्याग्रह किया जाए।
जय श्री विठ्ठल।