विकास
Written by -डॉ. विजेंद्र त्रिपाठी (एम.डी. (पीडियाट्रिक्स)), 2020-08-17
अबोध सा शिशु
कितना भोला होता है
निश्छल हँसी और
सहज आँसुओं से..
हमारे अंतर को धोता है!
पंखुड़ी से होंठ
कोमल सी पलकें..
नख से शिख तलक
सौम्यता ही सौम्यता झलके!
शिशु की पलकों को
हम निहारते हैं,
बच्चा हमारी और हम बच्चे की
आँखों में झाँकते हैं!
शनै शनै लुप्त होने लगती हैं..
कोमल पलकें-
उनकी जगह
ले लेते हैं कुछ झाड़- झंखाड़,
कोमलता कहीं खो जाती है
उग आते हैं स्वार्थों के
छाया विहीन से ताड़!
और तभी हम बड़े गर्व से कह उठते हैं-
"देखो, बच्चा बड़ा हो रहा है!!"